ललित शास्त्री

हम सभी अपने को कृषि विशेषज्ञ, अर्थशात्री, परमज्ञानी बन तरह-तरह के सुझाव देते रहते हैं, संसद में कानून बनाते रहते हैं और किसानों के हित के लिए झंडा लेकर छत पर चढ़ चीखते रहते हैं । यह सिलसिला स्वाधीनता के बहुत पहले से चला आ रहा है। जरूरत है सभी कृषि से जुड़े मुद्दों पर समग्र दृष्टि से विचार किया जाय। इतिहास से भी सबक लेने की आवश्यकता है। यूरोप में औद्योगीकरण के आरंभिक काल मे किसानों की स्थिति और किस प्रकार लाखों-लाखों किसानों का दो विश्व युद्धों में नरसंहार हुआ। कैसे रूस में किसानों की बलि चढ़ाई गई। अमेरिका में 1930 की महामंदी और कैसे किसानों की परिस्थिति और कृषि के क्षेत्र में वहां सब कुछ बदल गया। चीन का भी उदाहरण सब के सामने है।
यहां मैं एक संस्मरण सुनाना चाहूंगा। इटली में जब पिछले 3-4 दशक पूर्व खेती घाटे का सौदा हो गई तो वहां गाँव से शतप्रतिशत युवा शहरों की ओर पलायन कर गए। एक बार 20 साल पहले जब में उत्तरी इटली के एक गांव में एक सभ्रांत किसान के निवास भोजन के लिए गया तो उन्होंने बताया क्षितिज तक जो लहलहाते खेत दिख रहे है, वे उन्ही के हैं । मैने उनसे पूछा कि रविवार का दिन है सभी भोजन के लिए बैठे हैं तो उनका वयस्क पुत्र कहाँ है, इस पर उन्होंने बताया कि वह तो आज फैक्ट्री ( इटली में छोटे वर्कशेड को भी ‘fattory’ -फैक्ट्री कहते हैं) जो कि घर के पीछे ही है, वहां मोटर की आर्मेचर वाइंडिंग में व्यस्त है। किसी भी तरह आज उसे यह काम पूरा कर ग्राहक को मोटर देनी है। इसपर मैने उनसे पूछा इतने विशाल खेत के आप मालिक हैं तो बेटे को अलग से काम क्यों करना पड़ रहा है, तो उन्होंने जवाब दिया: “हमारे खेत पर काम करने के लिए मेरे दो हाथ ही काफी हैं। मेरे बाद तो सब बेटे का ही है पर अभी तो उसे खेती के अलावा और भी कौशल में निपुण होकर आर्थिक रूप से आत्म-सम्पन्न होने की आवश्यक्ता है”। इसी के साथ मैने देखा इटली में एक महत्वपूर्ण नियम। वहां हर साल चाहे वह गांव ही क्यों ना हो, हर व्यावसायिक केंद्र चाहे वह हॉटेल, रेस्टोरेंट हो या कोई दुकान हो, वहां के कानून अनुसार सभी के लिए आवश्यक है साल में एक बार सारे पर्दे बदलना व भवनों को नए सिरे से रंग करना। इस प्रकार, वहां लगातार, गांव-गांव, अलग-अलग माल की मांग और आपूर्ति होती रहती है, और साथ ही साथ कौशल-केंद्रित कारीगरों को व्यवसाय के साधन भी उपलब्ध रहते हैं। यह सब जब श्री शिवराज सिंह चौहान पहली बार मुख्य मंत्री बने तो मैंने उन्हें बताया था। इस पर उन्होंने हामी भरते हुए कहा था कि गुणवत्ता आधारित शिक्षा, कौशल विकास और आर्थिक ढांचा सुदृढ़ करने की दिशा में प्राथमिकता से पहल की आवश्यकता है। यह बात भाजपा के नेतृत्व में केंद्र में 2014 में NDA शासन आने और उनके द्वारा कौशल विकास की नीति के क्रियान्वन के अनेक वर्ष पूर्व की है।

इस परिप्रेक्ष में देखिए, भारत मे पीढ़ी दर पीढ़ी जोतने वाली भूमि, अर्थात खेत, विभाजित होते जा रहे हैं, और किसानों की बहुत बड़ी आबादी (जो तेजी से बढ़ रही है) ऐसी है जहां कृषक परिवारों की औसत खेतिहर भूमि का आकार सिमटता जा रहा है और उनके (marginal farmers) लिए खेती जीवन निर्वहन का अब माध्यम हो ही नही सकती – फायदे का सौदा तो बहुत दूर की बात है।
इन सभी बातों और इसके अलावा भी हर जुड़े विषय एवं दूरगामी परिणाम को ध्यान में रख, राजनीति से ऊपर उठकर, कृषि नीति बनाने कि और उसे अन्य क्षेत्रों (सेक्टर्स) के साथ एकीकृत करते हुए क्रियान्वयन की आवश्यकता है। मुझे पूरा भरोसा है नरेन्द्र मोदी सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ रही है।